जब नाचने में मास्टरी ना हो तो आंगन को टेढ़ा बतला कर, अपने आप को संतुष्ट किया जा सकता है परंतु वास्तविकता को बदला नहीं जा सकता। कुछ ना जानना अथवा किसी क्षेत्र में थोड़ा जानना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। ‘नाच न जाने आंगन टेढ़ा’ आश्चर्य की बात तब होती है जब व्यक्ति उस क्षेत्र में विशेष अनुभवी बनने के बजाय सहायक को दोष देता है और दूसरे क्षेत्र में मुड़ जाता है।
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